PHOTOS

Saturday, March 30, 2013

उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र द्वारा राजभाषा कार्यषाला का आयोजन



बीकानेर 30 मार्च 2013 राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा आज दिनांक को राजभाषा कार्यषाला का आयोजन रखा गया। राजभाषा प्रबन्धन उष्ट्र संबंधी विषय पर आयोजित इस कार्यषाला में अतिथि वक्ताओं के रूप में राजकीय डँॅूगर महाविद्यालय,बीकानेर के हिन्दी साहित्य के व्याख्याता श्री ब्रजरतन जोषी एवं अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के प्रोफेसर श्री बी.एल.भादानी को आमन्त्रित किया गया।
कार्यषाला में श्री ब्रजरतन जोषी द्वाराराजभाषा प्रबन्धनविषयक व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि एक अनुसंधान संस्थान होते हुए भी राजभाषा के प्रति समर्पित भाव से कार्य किया जा रहा है, भाषा के प्रति विनयषीलता एक प्रेरणास्पद कार्य की श्रेणी में आता है। श्री जोषी ने अपने व्याख्यान में प्रबन्धन हेतु भाषा के प्रति समर्पण को पहला सूत्र बताया, इसी क्रम में विपणन, उत्पादन एवं विज्ञापन के अन्तर्गत रचनाकार, प्रषासक, प्रचारक, संचार, षिक्षक कार्य करते हैं। उन्होंने हिन्दी भाषा को कमतर भाषा मानते हुए इसे स्वाभिमान के रूप में लेने की बात कही।
इस अवसर पर अन्य अतिथि वक्ता के रूप पधारे श्री बी.एल.भादानी नेउष्ट्र: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में‘‘ पर बोलते हुए कहा कि उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र इस पशु से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर उल्लेखनीय कार्य कर रहा हैं, वैज्ञानिक उपकरणों/कसौटी पर यह संस्थान उष्ट्र से जुड़ी हर समस्या का निदान खोजने का प्रयास करता हैं परंतु आवष्यकता इस बात की भी हैं कि 300-350 वर्षाें पर उष्ट्र पालन में आए बदलाव का भी आकलन किया जाए। श्री भादानी ने कहा कि यह अध्ययन का विषय होना चाहिए कि इतने लम्बे अर्से तक ऊँट का पालन कैसे संभव हो पाया हैइस पशु का ऐतिहासिक महत्व रहा हैं तथा इससे जुड़ी प्रत्येक वस्तु को सामने लाया जाना चाहिए। उन्होंने इस अवसर पर राजभाषा के संबंध में बोलते हुए कहा कि हिन्दी की पूरी एक विकास यात्रा है और इसमें सम्पन्नता कैसे आई ? यह जानना भी जरूरी हैं।
इस अवसर पर केन्द्र निदेषक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.एन.वी.पाटिल ने अतिथि वक्ताओं द्वारा प्रस्तुत व्याख्यानों को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि कोई भी विद्वान व्यक्ति अपनी जीवन अनुभव यात्रा को एक सीमित समय सीमा में व्याख्यान के माध्यम से प्रस्तुत करता हैं और यह उसके जीवन का सार है, अतः व्याख्यानों द्वारा प्रस्तुत विचार हमें पुनः चेतनता प्रदान करने का काम करते हैं, इनका लाभ उठाया जाना चाहिए। डॉ.पाटिल ने केन्द्र की अनुसंधान रिपोर्ट को द्विभाषी रूप में (हिन्दी अंग्रेजी) प्रकाषित करने की बात कहते हुए कहा कि आज जरूरत इस बात की हैं कि देष के किसान के साथ आपसी संवाद स्थापित करने हेतु हिन्दी को अपनाया जाए। उन्होंने ऐतिहासिक तौर पर जो उष्ट्र पालन संबंधी नीति/तरीके कारगर साबित हुए उनका अवलोकन किए जाने की महत्ती आवष्यकता जताई।

No comments:

Post a Comment