बीकानेर, 29 मार्च। नगर विकास न्यास की ओर से राजस्थान दिवस पर शुक्रवार राजकीय फोर्ट उच्च माध्यमिक विद्यालय के खेल मैदान में कवि सम्मेलन व मुशायरा में स्मारिका नगर वैभव विमोचन शिक्षा मंत्री बृज किशोर शर्मा, राज्य वित आयोग के अध्यक्ष डॉ.बी.डी कल्ला, जिला प्रमुख रामेश्वर डूडी, जिला कलक्टर आरती डोगरा, नगर विकास न्यास के अध्यक्ष मकसूद ने किया। अतिथियों ने कवियों व शायरों का शॉल, साफा तथा स्मृति चिन्ह से सम्मान किया। मुख्य अतिथि शिक्षा मंत्राी को नगर विकास न्यास के सचिव अरुण प्रकाश शर्मा ने साफा पहनाकर व अध्यक्ष मकसूद ने स्मृति चिन्ह से सम्मानित किया। नासिर जैदी ने स्मारिका व के बारे में बताया
कि इसमें नगर विकास न्यास की स्थापना से लेकर अब तक के कार्यों का बख्खान किया गया है। जिसमें न्यास की भावी योजनाएं, बीते वर्षों में प्राप्त उपलिब्धयों सहित बीकानेर शहर की सांस्कृतिक गतिविधियो का समायोजन किया गया है तथा साथ ही बीकानेर शहर के साहित्यकार/कवियों के आलेखों को भी प्रस्तुत किया गया है।
कवि सम्मेलन में अलग-अलग राज्यों से कवि व शायरों ने कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति दी। जिसमें श्री सोमदत व्यास भरतपुर, श्री अन्दाज हड़ौति, बूंदी, श्री छूट्टन खां दोषी उतर प्रदेश से, श्री सरफूदीन सरत दिल्ली से,, श्रीमति सुशीला शील जयपुर से व श्री गोरख प्रचण्ड कोटा से स्थानीय कवियों में श्री लक्ष्मीनारायण रंगा, जाकिर अदीब, गुलाम रसूल शाद जामी शमीम बीकानेरी, व श्री गुलाम मोहिद्दीन माहिर ने हिन्दी, राजस्थानी व उर्दू में काव्य पाठ कर श्रोताओं को बांधे रखा।
चाहता ही रहा मन तो शीतल पवन,
ले अगन गर्दिशों का गुब्बार आ गया।
तुम मिले तो सही, किन्तु उस मौड़ पर
जब उफनती नदी में उतार आ गया।
डॉ. सुशीला शील जयपुर।
शहीदों के प्रति:-
कट गए थे इंच-इंच, जो वतन के वास्ते,
क्रूरता जिसे मिटा सके न वो लकीर थे।
जो फिरंगियों के वृक्ष को चले थे चीरने,
वो एकलव्य की कमान के अचूक तीर थे।
सोमदŸा व्यास, भरतपुर
मैदान-ए-जंग में अपना सीना तान खड़ा है,
बैखों़फ शाहदत की लय पहचान खड़ा है।
मांँ-भारती को नाज़ है, राजस्थान पर
हर्षयन्त राजपूतों का बलिदान खड़ा है।
छूट्टन खां साहिल, मथूरा
फूल मुझे बरसाने दो, अमन के नग़में गाने दो,
लाखों पंक्षी भूखें हैं, मेरे हाथ में दाने दो,
एक मैं और एक आईना, आपके हैं, दिवाने दो।
सरफ नान पारवी, नई दिल्ली
कितना हो गया है, आज खुदगर्ज आदमी,
भूलता जा रहा है, अपना फर्ज आदमी,
धर्म होता नहीं है, बड़ा देश से,
रोम-रोम पर मां भारती का कर्ज आदमी
गोरख प्रचण्ड़ कोटा
म्हाँसूँ मून्ढ़े न बोले थाँका बीर,
नणद बाई काँई कराँ।
कोई जाणे न मनड़ा की पीर,
बातावाँ कैयाँ ला ज्याँ मराँ।
कदम दो साथ चलकर तुम,
मेरा दिल तोड़ मत जाना,
किसी तुफ़ान का रूख तुम,
मेरे घर छोड़ मत जाना
अन्दाज हाड़ौती, बून्दी
दिल की गहराई में इस दर्जा उतर जाता हूँ,
लोग पलकों पे बिठाते है, जिधर जाता हूँ।
मैंने मकसूद जमाने का चलन देखा है,
अब मेहरबा की मेहरबानी से डर जाता हूँ।
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