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Monday, March 11, 2013

बिश्नोईयों का मुक्ति धाम मुकामः शाश्वत है गुरू जभेश्वर के नियम



भारत आध्यात्मिक गुरूओं, सूफी-संतो की तपोभूमि है। जिन्होंने अलग-अलग कालखण्ड में इस धरा में जन्म लेकर अपने आध्यात्मिक चिंतन, वाणी और शिक्षाओं से समाज और देश को समृद्ध किया है। राजस्थान की मरूभूमि में भी बिरले व्यक्तित्व के धनी, प्रकृति उपासक संत के रूप में बिश्नोई धर्म के प्रवर्तक जाभोजी का प्रादुर्भाव हुआ। गुरू जभेश्वर द्वारा दिखाये गए मार्ग और सीख आज संपूर्ण मानवता और जीव-जगत कल्याण का आधार बनी है। बीकानेर जिले की नोखा तहसील के गांव मुकाम में गुरू जभेश्वर का समाधि स्थल मुकाम धाम बिश्नोई समाज का तीर्थ स्थल ही नहीं दीन-दुनिया के श्रद्धा का प्रमुख केन्द्र बन गया है।
            गांव मुकाम में लगने वाले राष्ट्रीय स्तर के मेले की तैयारियों एक सप्ताह पहले ही शुरू हो जाती है। मेले में हवन, जंभवाणी, अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा  का खुला अधिवेशन
सहित विविध आयोजन संत महात्माओं के सान्निध्य में होता है। अधिवेशन में राजनेता, जन प्रतिनिधि देश-विदेश के हजारों की तादाद में बिश्नोई समाज के लोग हिस्सा लेकर 29 नियमों के माध्यम से चराचर जीव की रक्षा का संदेश देने वाले, आदर्श समाज की आचार संहिता प्रतिष्ठित करने वाले गुरू जभेश्वर के आदर्शो का स्मरण करते हैं।                                                                                                              मुकाम में विक्रम संवत् 1593 मार्ग शीर्ष एकादशी को 85 वर्ष की आयु में गुरू जभेश्वर ने समाधि ली थी। उनके बनाये 29 नियमों की पालना करने वाले ही बिश्नोई कहलाते है। गुरू जंभेश्वर ने नियमों के साथ मानवीय चेतना, पर्यावरण रक्षा तथा उतम जीवनचर्या का संदेश देने वाली  120 साखियों की भी संरचना की।
            नागौर जिले के पीपासर गांव में वर्ष  1451 में जन्माष्टमी के दिन पंवार राजपूत परिवार में जन्में गुरू जभेश्वर के पिता नाम लोहटजी माता का नाम हंसा देवी (केशर) था। इकलौती संतान होने के कारण माता-पिता परिजन उन्हें बहुत प्यार करते थे। लेकिन जाभोजी बाल्यावस्था में ही मौन धारण रखते हुए आत्म परमात्म चिंतन करने लगे। वर्षो तक गौ सेवा करने वाले जांभोजी 34 वर्ष की आयु में कार्तिक बदी अष्टमी सन् 1485 में समराथल धोरे पर पवित्रा पाहल बनाकर बिश्नोई  संप्रदाय की स्थापना की। उन्होंने 51 वर्ष तक समराथल धोरे पर ही सत्संग भगवान विष्णु की साधना भक्ति में समय व्यतीत किया उन्होंने 29 नियम बनाकर उसका व्यापक प्रचार प्रसार किया। उन्होंने लौकिक देह को विक्रम सवत 1526 में तालवा वर्तमान मुकाम गांव में त्याग अपने आलौकिक संदेशांे की प्रतिष्ठा को चार चांद लगा दिए। उन्होंने जो 29 नियम बनाए उनके संबंध में एक कहावत भी प्रसिद्ध हैउणतीस धर्म की आंकडी, हृदय धरियो जोय, जांभोजी की कृपा करी नाम बिश्नोई होय
            गुरू जभेश्वर के 29 नियमों में प्रतिदिन सुबह स्नान करना, 30 दिन जन्म सुआ मनाना, पांच दिन रजस्वला स्त्राी को आंतरिक शुद्धता एवं पवित्राता को बनाए रखना, तीन समय संध्या उपासना करना, संध्या के समय आरती करना एवं ईश्वर के गुणों के बारे में चिंतन करना, निष्ठा एवं प्रेम पूर्वक हवन करना, पानी, दूध को छानकर पीना, वाणी में संयम रखना, दया एवं क्षमा को धारण करना, चोरी, निंदा, झूठ तथा वाद-विवाद का त्याग करना, अमावस्या के दिन व्रत रखनाभगवान विष्णु का भजन करना, जीवों के प्रति दया का भाव रखना, हरा वृक्ष नहीं काटना, काम क्रोध मोह एवं लोभ का नाश करना, रसोई अपने हाथ से बनाना, जीव जंतुओं पशुओं की रक्षा करना, अमल, तंबाकू, भांग मद्य, नील का त्याग करना तथा बैल की बधिया नहीं करना। गुरू जंभेश्वर द्वारा बताएं अहिंसा, दया, पर्यावरण रक्षा तथा नशाखोरी की प्रवृति से दूर रहने आदि के नियम और सिद्धान्त युगों-युगों तक प्रासंगिक रहेंगें।
            मुकाम में प्रतिवर्ष फाल्गुन आश्विन में प्रतिवर्ष मेले भरते है, मेले में आने वाले श्रद्धालु विशाल गगन चुंबी सफेद संगमरमर से बने गुरू जभेश्वर के मंदिर परिसर में खोपरे शुद्ध घी से हवन में आहुतियां देने से समूचे मेला स्थल का वातावरण सुगंधमय बन जाता है। मेले में आने वाले श्रद्धालु गुरू जंभेश्वर की जन्म स्थली पीपासर तपस्या स्थली समराथल धोरों पर स्थित मंदिर में भी धोक लगाएंगे तथा हवन में आहुतियां देने सहित पक्षियों के लिए चुग्गा डालते है तथा मरू प्रदेश के कल्पवृक्ष खेजडी सहित विभिन्न वृक्षों को लगाने, हरिण आदि वन्य जीवों की रक्षा के संकल्प को दोहराते हैं। मेले के दौरान सेवक दल की ओर से भोजनालय सहित विभिन्न व्यवस्थाओं का संचालन किया जाएगा। हरियाणा, पंजाब, सहित अन्य प्रान्तों से विशेष रेल विभिन्न वाहनों में आने वाले श्रद्धालुओं के प्रवास भोजन की व्यवसथा में मेले के एक सप्ताह पूर्व ही स्वयं सेवक दल के सदस्य लग गए है।

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