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Saturday, April 6, 2013

रथयात्रा तो वह थी..!


भारतीय जनता पार्टी की बड़ी रथयात्राओं रामरथ यात्रा, एकता यात्रा, जनादेश यात्रा के साथ रहा। रामरथ यात्रा निस्संदेह अद्वितीय थी। आध्यात्मिकता भाव ने रामरथ को पूजनीय बना दिया और लालकृष्ण आडवाणी को महापुरुषों-सा सम्मान मिला। वे सिर्फ राजनेता नहीं रह गए ..उनके दर्शन और चरण स्पर्श करने को आम जन लालायित रहते।
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साल हो गए। मुझे याद है कि मंदसौर (मध्यप्रदेश) से आगे बढ़कर लालकृष्ण आडवाणी ने राजपुरिया ग्राम से राजस्थान की सीमा में प्रवेश किया तब हजारों लोग उनके स्वागत में पलक पांवड़े बिछाए खड़े थे। सैकड़ों आदिवासी स्त्री-पुरुष रंग-बिरंगे परिधानों में अपने परम्परागत हथियार धनुष-बाण से सुसज्जित थे। उदयपुर में तब कफ्र्यू था।

लोगों में तरह-तरह की आशंकाएं थीं। लेकिन कफ्र्यू में ढील के दौरान हुई जनसभा में करीब आठ हजार लोग मौजूद थे। यह सभा उस सभा से भी ज्यादा बड़ी थी जो पूर्व महाराणा महेन्द्र सिंह की प्रसिद्ध एकलिंग यात्रा के बाद उदयपुर में हुई थी और जिसमें अटलबिहारी वाजपेयी भी मौजूद थे। शहर से रथ निकला तो भी साथ-साथ करीब पन्द्रह हजार लोग चल रहे थे। कांकरोली और नाथद्वारा में भी आडवाणी का भव्य स्वागत हुआ।
गौमती चौराहा, देवगढ़, भीम, जवाजा, मांगलियावास इत्यादि गांवों में हजारों लोगों की जोश से ठाठें मारती भीड़ ने सारा वातावरण राममय कर रखा था। जगह-जगह तीन-तीन, चार-चार घंटों पहले से बैठे लोग रामधुन गाने में लगे हुए थे। औरतें, बूढ़े, बच्चे तक रह-रहकर नारे लगा उठते थे- आडवाणी आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं- मंदिर का निर्माण करो, हम तुम्हारे साथ हैंÓ
आडवाणी का रथ दवेद छपली, बाधाना, आसाण, बरार, तारागढ़, गागाजी का खेड़ा, नया खेड़ा, सूरजपुरा, पीसांगन, केसरपुर, कलालिया, नाहरपुरा, राजियावास, बली जस्सी खेड़ा, मकरेडा, खारवा जैसे छोटे-छोटे गांवों के आगे से गुजरा तो भी सैकड़ों लोग सड़क के दोनों किनारों पर खड़े थे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की ससुराल देवगढ़ में हुई सभा का स्थल खामली घाट तो जैसे दुल्हन की तरह सजा हुआ था। जगह-जगह झंडियां लगी थीं और स्वागत द्वार बने हुए थे। भीम में कोई दुकान, मकान या बिजली का खंभा नहीं बचा था जिस पर केसरिया झंडा नहीं फहर रहा हो। युवक झूम-झूम कर रामधुन कर रहे थे। वहां काफी संख्या में बैंडबाजे वालों ने गाजे-बाजे से आडवाणी का स्वागत किया। इन स्थानों पर आसपास के लोग ही नहीं थे बल्कि गौमती चौराहे पर तो तीन सौ-साढ़े तीन सौ किलोमीटर दूर का सफर तय करके जालौर जिले के सांचौर, उम्मेदाबाद, भीनमाल, रानीवाड़ा तक से लोग आए थे तो ब्यावर में कोटा से काफी तादाद में लोग आए थे।
गौमती चौराहे पर ही सभा में तत्कालीन आयुर्वेद राज्यमंत्री जोगेश्वर गर्ग ने मंत्रियों की मनसा प्रकट करते हुए कहा कि यदि नेतृत्व इजाजत दे तो वे लोग इस्तीफा देकर कारसेवा में जाना चाहते हैं। भीम में सभा हो रही थी तो पूरे बाजार में खामोशी व्याप्त थी। जनजीवन के नाम पर केवल दो-तीन पुलिसकर्मी खड़े थे।
ब्यावर, अजमेर और किशनगढ़ की सभाओं और बीच के गांवों के कई लाख लोगों ने राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के पक्ष में इक_ होकर लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा का स्वागत किया। लगता था जैसे ये लोग रथ देखने या आडवाणी का भाषण सुनने नहीं बल्कि राममंदिर निर्माण के संकल्प से अपने को जोडऩे आए हैं। अजमेर में रात सवा बारह बजे तक चली सभा में एक लाख से ऊपर लोगों की मौजूदगी पर बड़े-बूढ़ों का कहना था कि इससे पहले इतनी बड़ी सभा अजमेर में नहीं हुई। आनासागर के पास स्थित दौलतबाग तो भरा हुआ था ही बल्कि पास की सड़क पर भी लोग दूर-दूर तक खड़े थे। इससे भी खास बात यह थी कि अजमेर में प्रवेश करते ही लगता था जैसे दीपावली मनाई जा रही हो। अजमेर वालों ने उस दिन दीपावली मनाई भी थी। व्यापारियों ने आडवाणी का रथ गुजरने तक अपनी दुकानें खुली रखीं। रास्ते में 101 स्वागत द्वार बनाए गए थे तथा दुकानों में सजावट की गई थी। जगह-जगह रोशनी भी की गई थी और विभिन्न समाजों के लोग अपने बैनर लगाकर आडवाणी पर पुष्पवर्षा कर रहे थे। देर रात तक भी महिलाएं अपने बच्चों को साथ लिए सड़कों पर खड़ी थीं। लोगों में इतना जोश था कि रथ को सभा के बाद भीड़ से निकलने में कठिनाई हुई। लोगों का हुजूम बार-बार रथ के आड़े रहा था इसलिए आडवाणी को जिप्सी में बैठाकर किसी तरह रास्ता पार करवाया गया। रास्तों में सीता-राम, शंकर-पार्वती वगैरह की झांकियां सजाई हुई थीं।
दूसरे दिन सुबह आडवाणी अजमेर के सर्किट हाऊस से किशनगढ़ के लिए निकले तो रास्ते का जनजीवन ठप हो गया। अजमेर के जिन रास्तों से आडवाणी को गुजरना था वहां दोनों तरफ जैसे मानव दीवार खड़ी थी। लोगों से पूछने पर पता चला कि सुबह से ही वे रथ के दर्शन के लिए बैठे हैं। किशनगढ़ के चुंगी नाके पर रथ पहुंचा तो सैकड़ों स्कूटर-मोटरसाइकिल सवार और दर्जनों जीप-कारों में बैठे लोग आडवाणी की आगवानी के लिए आतुर थे।
इनमें से कई ऐसे नौजवान थे जिनके हाथों में तलवारें, फरसे, चाकू चमक रहे थे और कुछ ने बंदूकें भी ले रखी थीं। आडवाणी के पीछे सौ से ऊपर जीप-कारों का काफिला था जो आगे सैकड़ों स्कूटर-मोटरसाइकिल सवार चल रहे थे। किशनगढ़ का माहौल कुछ अलग था। शहर को पार करने वाली पूरी सड़क स्त्री-पुरुषों, बूढ़ों-बच्चों से अटी पड़ी थी। इसमें किसी को संदेह नहीं था कि किशनगढ़ में इससे बड़ा जमावड़ा पहले नहीं हुआ। ब्यावर का माहौल भी ऐसा ही था। आडवाणी ब्यावर पहुंचे तो ऐतिहासिक सभा तो हुई ही, बल्कि जैसा स्वागत हुआ वैसा पहले कभी किसी ने नहीं देखा बताया। लोगों ने तीन सौ किलोमीटर की दूरी तय करके भी आडवाणी को सुना।
गुलाबी नगर जयपुर में हुए रथयात्रा के स्वागत और सभा में जुटी अपार भीड़ की कल्पना इसी बात से की जा सकती है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने कहा, मैंने अपने 40 वर्षों के राजनीतिक जीवन में राजस्थान में कभी किसी बात के लिए इतनी भीड़ इक_ होते नहीं देखीÓ इस सभा ने आपातकाल के बाद की लोकनायक जयप्रकाश नारायण की ऐतिहासिक आमसभा को पीछे छोड़ दिया तो सती समर्थकों की विशाल रैली भी इसके आगे फीकी पड़ गई।
आयोजकों को इसकी कल्पना नहीं थी इसीलिए रामनिवास बाग के बजाय सभा त्रिपोलिया गेट पर रखी गई थी। लेकिन सभा के चार घंटे पहले से ही लोगों का ऐसा हुजूम आना शुरू हुआ कि आडवाणी के पहुंचने तक यह जनसैलाब का रूप धारण कर चुका था। त्रिपोलिया गेट से प्रेमप्रकाश सिनेमा तक और दाएं-बाएं छोटी-बड़ी चौपड़ तक सिर-ही-सिर नजर रहे थे।
मंच के पास से जत्थों के रूप में युवकों के रैले निकलते तो जनता तालियों की गडग़ड़ाहट और मंदिर निर्माण के नारे लगाकर उनका स्वागत कर रही थी। सर्वाधिक स्वागत हुआ भगवा टोपी पहनकर आए हुए बलिदानी जत्थे का जिसका नेतृत्व तत्कालीन विधायक रामेश्वर मूर्तिकार कर रहे थे। करीब घंटे भर तक तत्कालीन पर्यटन मंत्री पुष्पा जैन द्वारा करवाई जा रही रामधुन में दूर-दूर तक बैठी जनता स्वर मिला रही थी। शहर में कई सौ स्वागत द्वार बने थे। जगह-जगह बनाई गई प्याऊ, खंभों पर फहरते झण्डे और दिन भर शहर में स्कूटर-मोटरसाइकिलों से भगवा कपड़ा बांधे युवकों के समूहों ने गुलाबीनगर में कल्पनातीत दृश्य उत्पन्न कर रखा था। आडवाणी भी इस स्वागत से अभिभूत हुए और उन्होंने इसकी प्रशंसा की। भैरोंसिंह शेखावत ने जनसमर्थन के बल पर केन्द्र सरकार को चुनौती दी। उन्होंने कहा, राममंदिर को रोकने वाले यहां आकर ताकत आजमा लें। मंदिर बनकर रहेगा, कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती।Ó
जयपुर से रवाना होने के बाद आमेर, अचरोल, मनोहरपुर, शाहपुरा और कोटपूतली में सभाओं को संबोधित करने के बाद आडवाणी राजस्थान दौरे की आखिरी सभा में बहरोड पहुंचे। रात को डेढ़ बजे तक बहरोड में चली सभा में एक छोटा कस्बा होने के बावजूद हजारों लोग मौजूद थे। आडवाणी वहां खसतौर पर भावविह्वल थे क्योंकि 1947 में वे भारत के विभाजन के बाद सर्वप्रथम अलवर जिले में ही आए थे और 1951 में जनसंघ का काम शुरू हुआ तो उन्होंने यहीं से कार्य प्रारंभ किया था।

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