नई दिल्ली। जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में मोदी का नाम लिए बिना बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो निशाना लगाया उसकी टीस भाजपा अब तक महसूस कर रही है। यही वजह है कि उनके बयान के बाद से ही भाजपा के नेता उन पर तीखे बाण चलाने से नहीं चूक रहे हैं। बिहार की गठबंधन सरकार के पशुपालन मंत्री गिरिराज ने नीतीश की शिकायत पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से की। नीतीश के तीर से तिलमिलाए बिहार भाजपा में मोदी समर्थक भाजपा नेता काफी गुस्से में थे। बैठक समाप्त होने के बाद भाजपा ने कहा कि सही समय पर निर्णय लिया जाएगा। राजनाथ सिंह बिहार से आए भाजपा नेताओं
को सही समय पर उचित निर्णय लेने का भरोसा दिए। उधर गुस्से में गिरिराज सिंह ने कहा है कि नीतीश कुमार का बयान काफी हल्का है और अब लड़ाई भी आर-पार की होगी।
उन्होंने कहा कि नीतीश बार-बार भाजपा को इस तरह से बेइज्जत नहीं कर सकते हैं। यदि उन्हें लड़ने का इतना ही शौक है तो उन्हें खुलकर मैदान में सामने आ जाना चाहिए। नीतीश के बयान से बौखलाई भाजपा अब उन्हें और ज्यादा बर्दाश्त करती दिखाई नहीं दे रही है।
रविवार को नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया था कि वह फिलहाल बैटिंग करेंगे और क्षेत्ररक्षण भाजपा को करना होगा। इसका साफ सीधा अर्थ है कि गठबंधन बचाने की जिम्मेदारी भाजपा को निभानी होगी। भाजपा हालांकि इसके लिए तैयार नहीं है। उसने भी तत्काल यह स्पष्ट कर दिया कि इसकी जिम्मेदारी सामूहिक है।
नीतीश ने रविवार को सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी से भिडं़त की। हाल यह था कि जदयू राष्ट्रीय परिषद की बैठक में लगभग 40 मिनट के नीतीश के भाषण में आधे से ज्यादा समय तक मोदी ही छाए रहे। प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करने के लिए जदयू ने जहां भाजपा को डेडलाइन दे दी। वहीं नीतीश ने मोदी को अस्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि ‘उन्हें अनसुना किया गया तो परिस्थिति के अनुसार फैसला करेंगे।’ राष्ट्रीय परिषद ने कोई भी निर्णय लेने के लिए पार्टी अध्यक्ष शरद यादव और नीतीश को अधिकृत कर दिया।
पार्टी अध्यक्ष शरद यादव से लेकर नीतीश तक ने यह तो जरूर कहा कि वह अपनी ओर से गठबंधन तोड़ना नहीं चाहते, लेकिन शर्ते भी रख दीं। भाजपा भले ही पीएम उम्मीदवार घोषित करने से बचना चाहती है, जदयू ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में इस साल के अंत तक उम्मीदवार घोषित करने को कहा है। साथ ही यह भी बताया कि उम्मीदवार कैसा हो। चार गुण गिनाए और कहा कि उम्मीदवार की धर्मनिरपेक्ष छवि पर संदेह न हो और राष्ट्रीय एजेंडे के अनुरूप चलने पर बाध्य हो। जिस भाजपा में गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी इस दौड़ में सबसे आगे खड़े हों, उसके सामने जदयू की यह शर्त बहुत कुछ कहती है। कुछ लोगों का मानना है कि इसके जरिये जदयू ने विपक्षी दलों के हमले को थामने की कोशिश की है, तो कुछ इसे अलग रास्ता अपनाने की सुगबुगाहट मान रहे हैं।
नीतीश का समापन भाषण वस्तुत: भाजपा के लिए अल्टीमेटम जैसा ही था। नाम लिए बगैर उन्होंने गुजरात मॉडल पर अंगुली उठाई तो परोक्ष रूप से भाजपा पर राष्ट्रीय एजेंडे से दूर हटने का शक जताया। उन्होंने कहा, ‘बिहार में राजग गठबंधन बहुत अच्छा चल रहा है। 2010 में तनाव पैदा करने की कोशिश हुई थी। अब फिर से जेनेटिक मॉडिफिकेशन की कोशिश हो रही है। मूल तत्व को बदलने की कोशिश हो रही है। हम गठबंधन तोड़ना नहीं चाहते, लेकिन बुनियादी बातों में स्पष्टता होनी चाहिए।’ घूम-फिर कर नीतीश यही संकेत देते रहे कि मोदी मॉडल देश के लिए ठीक नहीं है। बदले में वह बिहार मॉडल की जरूर तारीफ करते रहे।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र करते हुए नीतीश ने कहा, वाजपेयी के वक्त भाजपा के साथ एक एजेंडा तय हुआ था। अगर उससे भटकने की कोशिश होगी तो जदयू को रास्ता तलाशना पड़ेगा। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह व अरुण जेटली से मुलाकात के बाद नीतीश के तेवर और जदयू की डेडलाइन ने यह संकेत दे दिया है कि गुणा-भाग शुरू हो गया है।
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