नई दिल्ली/कितना भी बड़ा संकट हो, सियासत अपनी फितरत कभी नहीं छोड़ती। उत्तराखंड में मची तबाही के बाद वहां से पीड़ितों को निकालने के लिए सेना, वायुसेना और आईटीबीपी के जवान अपनी जान पर खेल रहे हैं।लेकिन नेताओं को इस बात की कोई फिक्र नहीं। उन्हें सिर्फ राजनीति से मतलब है। मंगलवार शाम वायुसेना का एमआई-17 वी-5 हेलीकॉप्टर गौरीकुंड के पास क्रैश हो गया।
इस दर्दनाक हादसे में हेलीकॉप्टर में सवार सभी 20 लोगों के मारे जाने की आशंका है। केदारनाथ से लौट रहे इस हेलीकॉप्टर में वायुसेना के पांच अफसरों के अलावा एनडीआरएफ के नौ और आईटीबीपी के छह जवान भी सवार थे।
इस हादसे के बावजूद जवानों ने राहत और बचाव कार्य थामे नहीं हैं। तेज बारिश और भूस्खलन के बावजूद जवान वहां फंसे लोगों को निकालने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। पीड़ितों का कहना है कि जवान उनके लिए देवदूत बनकर आए हैं।
लेकिन दूसरी तरफ देश के नेता हैं। हर राजनीतिक दल कह रहा है कि आपदा के वक्त सियासत से बचा जाना चाहिए, लेकिन हर दल राजनीतिक रोटियां सेंकने का कोई मौका छोड़ने को तैयार नहीं।
तू डाल-डाल, मैं पात-पात
भाजपा की चुनावी कमान संभालने वाले नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले उत्तराखंड में उतरकर एक दिन में 15 हजार लोगों को बचाने का दावा किया। इससे पहले गृह मंत्री ने कहा था कि किसी भी नेता का हेलीकॉप्टर वहां उतरने नहीं दिया जाएगा।
लेकिन जैसे ही कांग्रेस उपाध्यक्ष्ा राहुल गांधी देश लौटे, तो नियम बदल दिए गए। उन्होंने दिल्ली से राहत सामग्री से लदे ट्रक रवाना किए और उसके बाद खुद भी वहां के लिए रवाना हो गए।
उन्होंने वहां प्रभावितों से मुलाकात कर उनका हालचाल लिया। साथ ही यह दलील भी दी कि वह पहले इसलिए नहीं आए, क्योंकि इससे राहत कार्यों में बाधा पैदा होती।
भाजपा हो या कांग्रेस, हर राजनीतिक दल इस मौके को सियासी नंबर बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। मोदी की पहल ने दूसरे दलों के कान खड़े कर दिए हैं। लेकिन यह साफ है कि पीड़ितों की चिंता किसी दल को नहीं, उन्हें मतलब है, तो सिर्फ राजनीतिक मौकापरस्ती से।
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