बीकानेर, 30 मई । कद्दूवर्गीय सब्जियों में करेला एक बहुउपयोगी सब्जी है। जिसकी फसल काश्तकार ग्रीष्म व वर्षाकाल में भी ले सकते है व अच्छा लाभ कमा सकते है। करेले की फसल में आरम्भ से ही नियमित सिंचाई व निराई गुडाई करते रहना चाहिए।
स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के नर्सरी प्रभारी डॉ. इन्द्रमोहन वर्मा ने बताया कि करेले की जडें़ उथली होने के कारण ज्यादा गहराई तक निराई गुडाई नहीं करनी चाहिए। ग्रीष्मकाल में अधिक तापमान के कारण अधिक पानी की आवश्यकता रहती है तथा पर्याप्त बढ़वार के लिए खेत में बराबर नमी रहनी चाहिए। उन्होनें बताया कि गर्मी के मौसम में भूमि की किस्म व मौसम के अनुसार 2-3 दिन से लेकर 6-7 दिन के अन्तर पर नियमित सिंचाई करते रहना चाहिए।
वर्षाकाल में आवश्यकता अनुसार ही सिंचाई करनी चाहिए। करेले में यदि बेलों को सहारा देकर ऊपर फैलने दिया जाए तो अधिक उत्पादन मिलने के साथ-साथ फलों की गुणवता भी अच्छी रहती है। यह कार्य वर्षाकाल में फलों को सड़ने से बचाने के लिए सहायक होता है। बेलों को लकडी, सरकडीं या लोहे के तारों का पंडाल बनाकर फैलने देना चाहिए। छोटे क्षेत्रों या आंगनबाड़ी में इस सब्जी को लेने पर बाउन्ड्रीवाल, छप्पर, चारे व घास के ढेर के सहारे बढ़ा देना चाहिए।
डॉ. वर्मा ने बताया कि कद्दूवर्गीय सब्जियों में वृद्धि नियामकों के छिडकाव का मादा फूलों की संख्या एवं वृद्धि में योगदान रहता है। इन विभिन्न नियामकों का छिडकाव दो बार पौधों की छोटी अवस्था में किया जाना चाहिये। वृद्धि नियामकों का प्रथम छिड़काव पौधों की दो पत्ती अवस्था में किया जाना चाहिए। रसायनों का छिडकाव अन्तर्गत मेलिक हाइड्राजाइड 2.5 ग्राम रसायन 50 लीटर पानी में, नेफथेलीन एसिटिक एसिड का 10 मिलिलीटर को 50 लीटर पानी में , इथ्रेरल 10 मिलिलीटर 50 लीटर पानी में रसायनों का छिड़काव किया जाना चाहिए। करेला मधुमेंह व गठियां के रोगियों के लिए अत्यधिक लाभकारी है। करेला कड़वा, पाचक, क्रमीनाशक , ज्वरनाशक होता है तथा बवासीर, पीलिया, ब्रोंकाइटिस व पेट के रोगों में लाभकारी है। इसमें विटामीन सी अच्छी मात्रा में होता है।
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