राजीव गांधी डिजीटल विद्यार्थी स्कीम फेल
टैबलेट से न कंप्यूटर का काम; न पढ़ाई..गाने सुनो, फोन करो
जयपुर! रिफाइनरी, नि:शुल्क दवा और जांच योजना बेहतरीन बजट के बाद गहलोत सरकार की बड़ी उपलब्धि के रूप में देखी जा रही राजीव गांधी डिजिटल विद्यार्थी योजना धरातल पर फेल होती नजर आ रही है। इस योजना के क्रियान्वयन में तुरत-फुरत बच्चों को चैक तो वितरित कर दिए गए हैं, लेकिन टैबलेट से होने वाले फायदे-नुकसान या दी गई राशि के सही उपयोग को लगभग नजरअंदाज कर दिया गया है। वहीं बाजार में आने वाले 210 करोड़ रुपए में अपनी-अपनी हिस्सेदारी तय करने के लिए टैबलेट कंपनियों ने उत्पादों के दामों में काफी कमी कर दी है, जिससे अब उनकी गुणवत्ता भी सवालों के घेरे में आ गई है।
जानकारों का कहना है कि सरकार की ओर से यह राजीव गांधी डिजिटल विद्यार्थी योजना प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले विद्यार्थियों में कम्प्यूटर शिक्षा की समझ बढ़ाते हुए उन्हें आईटी फ्रेडली बनाने के लिए की थी। लेकिन इस योजना के लिए टैबलेट खरीद के लिए दी गई राशि में कम्प्यूटर ज्ञान की समझ बढ़ाने वाला कोई उपकरण क्रय किया जा सकने से योजना के सफल क्रियान्वयन और निर्धारित उद्देश्य प्राप्त करने पर भी सवालिया निशान लग गए हैं। सरकार की ओर से विद्यार्थियों को डिजिटल तकनीक फ्रेंडली बनाने के लिए टैबलेट खरीद के लिए खर्च की जा रही इस करोड़ों रुपए की राशि पर अपनी निगाहें गढ़ाते हुए आईटी उत्पाद बनाने वाली कंपनियों ने इन उपकरणों को कम्प्यूटर शिक्षा के लिए फ्रेंडली बनाने की बजाय दामों को सस्ता कर सिर्फ इन्हें मल्टीमीडिया उपयोग के लिए ही बेहतरीन बनाने की तैयारी में पुरजोर तरीके से जुटी हुई हैं।
210 करोड़ रुपए की इस योजना में टैबलेट कंपनियां अपनी-अपनी हिस्सेदारी तलाशने में जुट गई हैं। राजीव गांधी डिजीटल विद्यार्थी स्कीम के तहत 3.5 लाख बच्चों को 6-6 हजार रुपए टैबलेट खरीदने के लिए दिए गए हैं। हालांकि इन पैसों के सही उपयोग को निश्चित करने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए गए है, स्टूडेंट्स को सिर्फ लिखित स्टेटमेंट देना होगा कि टैबलेट खरीद लिया गया है। फिर भी अगर स्टूडेंट्स को बांटी गई इस रकम से टैबलेट्स खरीदे जाते हैं, तो करीब 3.5 लाख टैबलेट्स की मांग बनेगी।
माइक्रोमैक्स, लावा, स्पाइस और लीमा जैसी टैबलेट बनाने वाली कंपनियां 210 करोड़ के इस बाजार में ज्यादा से ज्यादा बाजार कवर करने की कोशिश में है। जानकारों का आकलन है कि अधिकतर ब्रांडेड कंपनियों के टैबलेट 8 से दस हजार रुपए तक ही मिल पाते है जबकि राजस्थान सरकार द्वारा 6 हजार रुपए ही दिए गए है। ऐसे में लोकल कंपनियां इस मांग को पूरी करने में जुट गई हंै। अब तक जो टैब 8 हजार तक की रेंज में थे उनमें बदलाव कर उन्हें कम रेंज के अनुकूल तैयार किया जा रहा है।
लीमा मोबाइल के रजत गोयल इस स्कीम को टैब कंपनियों के लिए अच्छा मौका बताते हुए कहते हंै कि योजना के लांच होने के बाद से 2जी और 3जी कैटेगरी के नए मॉडल तैयार किए गए हैं। गोयल के अनुसार पहले यह टैबलेट बाजार में 7 हजार की रेंज में बेचे जाते थे लेकिन अब कुछ बदलाव के बाद इन्हें 5 हजार रुपए में उपलब्ध करवाया जा रहा है। गोयल ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा चैक बांटे जाने के बाद से टोंक, बीकानेर, उदयपुर, सीकर, बांसवाड़ा में डिस्ट्रीब्यूटर्स के जरिए 5 से 7 हजार टैबलेट बेचे जा चुके हंै।
इसी तरह मोबाइल और टैबलेट बाजार में डील करने वाली एशियन मार्केटिंग के टीटू तनवानी ने बताया कि मुख्यमंत्री द्वारा शुरू की योजना सराहनीय है। राजस्थान में स्वाइप टैबलेट हमेशा से अग्रणी रहा है और इस योजना के लिए खास तैयारियां भी की गई हंै। तनवानी के अनुसार कंपनी द्वारा दो सिम वाला टैबलेट जो पहले 6 8 सौ का बेचा जाता था उसे बच्चों के लिए 5 हजार 9 सौ 99 में बेचा जा रहा है। तनवानी के अनुसार इस योजना के बाद से कई कंपनियों ने राजस्थान का रुख कर लिया है फिर भी स्वाइप टैबलेट की बाजार में 20 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
बढ़ता बाजार
आईडीसी ने 2012 में भारत में 21.5 लाख टैबलेट बेचे जाने का अनुमान लगाया है। जबकि गार्टनर के अनुसार गत वर्ष कम से कम 15 लाख यूनिट्स बिकने की बात कही है। इंडस्ट्री बॉडी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन फॉर इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ने 2015-16 तक इस मार्केट के 73 लाख यूनिट्स तक पहुंचने की उम्मीद जताई है। इसमें सरकारी योजनाओं का हिस्सा करीब 54 लाख टैबलेट्स का होगा।
राजीव गांधी डिजिटल विद्यार्थी योजना
मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद शिक्षा विभाग की ओर से राज्यभर में सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले होनहार विद्यार्थियों को राजीव गांधी विद्याथी डिजिटल योजना के तहत टैबलेट खरीदने के लिए छह-छह हजार रुपए की राशि के चैक वितरित किए गए हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजधानी के एक बालिका स्कूल में इस योजना को 14 मई को शुरू किया था। सरकारी स्कूल की मिडिल कक्षा में पढऩे वाले करीब साढ़े तीन लाख विद्यार्थियों को इस योजना से लाभान्वित किया गया है। जिस पर दो सौ करोड़ रुपए से अधिक का बजट खर्च हुआ है। सरकार की ओर से टैबलेट खरीद के लिए यह चैक आठवीं कक्षा में दूसरे स्थान से ग्यारहवें स्थान प्राप्त करने वाले होनहार बालकों को दिए गए हैं।
फिर होनहार को कौन तलाशेगा
जानकारों का कहना है कि विभाग ने विद्यार्थियों से टैबलेट खरीद की संस्थाप्रधान द्वारा प्रमाणित सूचना 30 सितम्बर तक मांगी है। टैबलेट खरीद की यह राशि उन विद्यार्थियों को दी गई हैं जो विद्यार्थी मिडिल स्कूल में पढ़ रहे थे। अब वे आगे की पढ़ाई के लिए माध्यमिक स्कूलों में आ गए हैं। नया सत्र शुरू हो गया है अब छात्र कौनसी सरकारी या निजी स्कूल में पढ़ रहा है। इस बात का पता संस्थाप्रधानों के लिए गलफांस बन गया है। विभाग ने उन्हें टैबलेट खरीद की रिपोर्ट सांैपने के निर्देश तो दे दिए हैं। लेकिन चैक लेने वाले छात्र को नए सत्र में कैसे तलाशना है, ये परवाह किए बगैर जल्दीबाजी में शुरू की गई इस योजना का सारा जिम्मा स्कूल हैडमास्टरों पर मढ़ दिया है। जिस पर अभी से विरोध दर्ज होना शुरू हो गया है। अगर छात्र से स्वघोषणा पत्र नहीं मिल पाता है तो फिर क्या कार्रवाई की जाएगी? विभाग इस सवाल पर मौन धारण किए हुए है।
आईडीसी ने 2012 में भारत में 21.5 लाख टैबलेट बेचे जाने का अनुमान लगाया है। जबकि गार्टनर के अनुसार गत वर्ष कम से कम 15 लाख यूनिट्स बिकने की बात कही है। इंडस्ट्री बॉडी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन फॉर इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ने 2015-16 तक इस मार्केट के 73 लाख यूनिट्स तक पहुंचने की उम्मीद जताई है। इसमें सरकारी योजनाओं का हिस्सा करीब 54 लाख टैबलेट्स का होगा।
राजीव गांधी डिजिटल विद्यार्थी योजना
मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद शिक्षा विभाग की ओर से राज्यभर में सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले होनहार विद्यार्थियों को राजीव गांधी विद्याथी डिजिटल योजना के तहत टैबलेट खरीदने के लिए छह-छह हजार रुपए की राशि के चैक वितरित किए गए हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजधानी के एक बालिका स्कूल में इस योजना को 14 मई को शुरू किया था। सरकारी स्कूल की मिडिल कक्षा में पढऩे वाले करीब साढ़े तीन लाख विद्यार्थियों को इस योजना से लाभान्वित किया गया है। जिस पर दो सौ करोड़ रुपए से अधिक का बजट खर्च हुआ है। सरकार की ओर से टैबलेट खरीद के लिए यह चैक आठवीं कक्षा में दूसरे स्थान से ग्यारहवें स्थान प्राप्त करने वाले होनहार बालकों को दिए गए हैं।
फिर होनहार को कौन तलाशेगा
जानकारों का कहना है कि विभाग ने विद्यार्थियों से टैबलेट खरीद की संस्थाप्रधान द्वारा प्रमाणित सूचना 30 सितम्बर तक मांगी है। टैबलेट खरीद की यह राशि उन विद्यार्थियों को दी गई हैं जो विद्यार्थी मिडिल स्कूल में पढ़ रहे थे। अब वे आगे की पढ़ाई के लिए माध्यमिक स्कूलों में आ गए हैं। नया सत्र शुरू हो गया है अब छात्र कौनसी सरकारी या निजी स्कूल में पढ़ रहा है। इस बात का पता संस्थाप्रधानों के लिए गलफांस बन गया है। विभाग ने उन्हें टैबलेट खरीद की रिपोर्ट सांैपने के निर्देश तो दे दिए हैं। लेकिन चैक लेने वाले छात्र को नए सत्र में कैसे तलाशना है, ये परवाह किए बगैर जल्दीबाजी में शुरू की गई इस योजना का सारा जिम्मा स्कूल हैडमास्टरों पर मढ़ दिया है। जिस पर अभी से विरोध दर्ज होना शुरू हो गया है। अगर छात्र से स्वघोषणा पत्र नहीं मिल पाता है तो फिर क्या कार्रवाई की जाएगी? विभाग इस सवाल पर मौन धारण किए हुए है।
4 की खरीद,ले रहे 6 हजार
राजीव गांधी डिजीटल विद्यार्थी स्कीम के तहत टैबलेट खरीदने के लिए 6 हजार सीधे बच्चों के खातों में जमा कराए गए हैं फिर भी इसमें कई गड़बडिय़ों के मामले सामने आ रहे हंै। पूरे मामले में हो यह रहा है कि कहीं स्कूल प्रबंधन तो कहीं मध्यस्थ बाजार से 3से 4 हजार रुपए का टैबलेट बड़ी संख्या में खरीद कर उन्हें बच्चों को 6 -6 हजार रुपए में बेच रहे हंै। कई जगह तो उन्हें यही टैबलेट खरीदने के लिए बाध्य भी किया जा रहा है। बाजार के जानकारों के अनुसार बच्चों को दिए जाने वाले टैबलेट में सिम और कॉलिंग सुविधा के बारे में पता करना चाहिए क्योंकि अधिकांश टैबलेट कंपनियों ने 6 हजार की रेंज में कॉलिंग सुविधा उपलब्ध करा दी है।
दुरुपयोग का डर
बाजार में उपलब्ध ज्यादातर टैबलेट सिर्फ मल्टीमीडिया उपयोग के हिसाब से ही उतारे गए हैं। इसके साथ ही इनमें ऐसे एप्लीकेशन इनस्टॉल आ रहे हैं, जो मनोरंजन प्रदान करने के ही अधिक काम आ रहे हैं। इनका अधिक उपयोग सोशल वेबसाइटों का उपयोग, गेम, संगीत सुनने, वीडियो देखने और चेटिंग करने में ही किया जा सकता है। यू ट्यूब और अन्य पोर्न साइट तक छात्रों की पहुंच भी आसान हो सकती है। छात्र इससे न तो कम्प्यूटर ऑपरेट करना सीख सकता है और न ही बेसिक कम्प्यूटर ज्ञान। इसके साथ ही इंटरनेट कनेक्शन और नोलेज नेटवर्क की जानकारी बिना टैबलेट का ज्ञानार्जन की दृष्टि से प्रभावी उपयोग नहीं हो पाने की आशंकाएं भी जताई जा रही हैं।
घोषणा पत्र भरवाएंगेजिला शिक्षा अधिकारी प्रारम्भिक शिक्षा राधामोहन गुप्ता ने बताया कि विद्यार्थियों को टैबलेट खरीद के लिए दी गई राशि का उपयोग कर इसकी सूचना इस साल सितम्बर तक विभाग को देनी होगी। इस जानकारी को जुटाने के लिए स्कूल के संस्था प्रधानों को पाबंद किया गया है। अभी विद्यार्थियों को टैबलेट खरीद के लिए छह हजार रुपए का चैक दिया गया है। विद्यार्थी को इस राशि का उपयोग करके विभाग को सूचित करने के लिए कहा गया है। विभाग ने विद्यार्थियों से एक स्व घोषणा पत्र भरवाने का प्रावधान किया है। जिसमें टैबलेट खरीद की डिटेल देनी होगी। साथ ही संस्था प्रधान इस स्वघोषणा पत्र को प्रमाणित करके विभाग को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे।
स्कूल में लाने की अनिवार्यता नहींराजस्थान प्राथमिक माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री महेन्द्र पाण्डे का कहना है कि सरकार ने विद्यार्थियों को टैबलेट खरीद के लिए राशि को दे दी लेकिन इनका उपयोग कैसे किया जा सकेगा। इस बात पर किसी का ध्यान नहीं गया है। इन टैबलेट को स्कूल में लाना भी अनिवार्य किया जाए। बाकायदा इसके लिए स्कूलों में शिक्षकों का प्रशिक्षण और बच्चों के लिए निर्धारित समय की कक्षा हो। लेकिन ऐसा नहीं होने से टैबलेट के बेहतर उपयोग की संभावनाएं कम ही हैं। इसके साथ ही कम्प्यूटर शिक्षा की समझ बढ़ाने के हिसाब से भी ये अधिक मददगार साबित नहीं होंगे। इससे बेहतर होता कि सभी स्कूलों में कम्प्यूटर प्रयोगशालाएं स्थापित कर दी जातीं।
राजीव गांधी डिजीटल विद्यार्थी स्कीम के तहत टैबलेट खरीदने के लिए 6 हजार सीधे बच्चों के खातों में जमा कराए गए हैं फिर भी इसमें कई गड़बडिय़ों के मामले सामने आ रहे हंै। पूरे मामले में हो यह रहा है कि कहीं स्कूल प्रबंधन तो कहीं मध्यस्थ बाजार से 3से 4 हजार रुपए का टैबलेट बड़ी संख्या में खरीद कर उन्हें बच्चों को 6 -6 हजार रुपए में बेच रहे हंै। कई जगह तो उन्हें यही टैबलेट खरीदने के लिए बाध्य भी किया जा रहा है। बाजार के जानकारों के अनुसार बच्चों को दिए जाने वाले टैबलेट में सिम और कॉलिंग सुविधा के बारे में पता करना चाहिए क्योंकि अधिकांश टैबलेट कंपनियों ने 6 हजार की रेंज में कॉलिंग सुविधा उपलब्ध करा दी है।
दुरुपयोग का डर
बाजार में उपलब्ध ज्यादातर टैबलेट सिर्फ मल्टीमीडिया उपयोग के हिसाब से ही उतारे गए हैं। इसके साथ ही इनमें ऐसे एप्लीकेशन इनस्टॉल आ रहे हैं, जो मनोरंजन प्रदान करने के ही अधिक काम आ रहे हैं। इनका अधिक उपयोग सोशल वेबसाइटों का उपयोग, गेम, संगीत सुनने, वीडियो देखने और चेटिंग करने में ही किया जा सकता है। यू ट्यूब और अन्य पोर्न साइट तक छात्रों की पहुंच भी आसान हो सकती है। छात्र इससे न तो कम्प्यूटर ऑपरेट करना सीख सकता है और न ही बेसिक कम्प्यूटर ज्ञान। इसके साथ ही इंटरनेट कनेक्शन और नोलेज नेटवर्क की जानकारी बिना टैबलेट का ज्ञानार्जन की दृष्टि से प्रभावी उपयोग नहीं हो पाने की आशंकाएं भी जताई जा रही हैं।
घोषणा पत्र भरवाएंगेजिला शिक्षा अधिकारी प्रारम्भिक शिक्षा राधामोहन गुप्ता ने बताया कि विद्यार्थियों को टैबलेट खरीद के लिए दी गई राशि का उपयोग कर इसकी सूचना इस साल सितम्बर तक विभाग को देनी होगी। इस जानकारी को जुटाने के लिए स्कूल के संस्था प्रधानों को पाबंद किया गया है। अभी विद्यार्थियों को टैबलेट खरीद के लिए छह हजार रुपए का चैक दिया गया है। विद्यार्थी को इस राशि का उपयोग करके विभाग को सूचित करने के लिए कहा गया है। विभाग ने विद्यार्थियों से एक स्व घोषणा पत्र भरवाने का प्रावधान किया है। जिसमें टैबलेट खरीद की डिटेल देनी होगी। साथ ही संस्था प्रधान इस स्वघोषणा पत्र को प्रमाणित करके विभाग को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे।
स्कूल में लाने की अनिवार्यता नहींराजस्थान प्राथमिक माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री महेन्द्र पाण्डे का कहना है कि सरकार ने विद्यार्थियों को टैबलेट खरीद के लिए राशि को दे दी लेकिन इनका उपयोग कैसे किया जा सकेगा। इस बात पर किसी का ध्यान नहीं गया है। इन टैबलेट को स्कूल में लाना भी अनिवार्य किया जाए। बाकायदा इसके लिए स्कूलों में शिक्षकों का प्रशिक्षण और बच्चों के लिए निर्धारित समय की कक्षा हो। लेकिन ऐसा नहीं होने से टैबलेट के बेहतर उपयोग की संभावनाएं कम ही हैं। इसके साथ ही कम्प्यूटर शिक्षा की समझ बढ़ाने के हिसाब से भी ये अधिक मददगार साबित नहीं होंगे। इससे बेहतर होता कि सभी स्कूलों में कम्प्यूटर प्रयोगशालाएं स्थापित कर दी जातीं।
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