रसूखदारों के लिए सिमटा जांच का दायरा
जयपुर, 23 मई।मूक-बधिर बालिकाओं को हवस के वहशी दरिंदों की ‘लेट नाइट पार्टियोंÓ में परोसने के शर्मनाक कृत्य के बाद चर्चाओं में आई स्वयंसेवी संस्था ‘आवाज फाउंडेशनÓ का अतीत भी बदचलन कथित समाजसेवियों की करतूतों से भरा हुआ रहा है
। इस संस्थान की शुरूआती दौर में कमान संभालने वालों में सत्तारुढ़ दल के एक अग्रिम संगठन का प्रमुख पदाधिकारी, एक धार्मिक पीठ का महंत और राजनीतिज्ञों की पार्टियों को आबाद रखने वाली कुछ महिला नेत्रियों के नाम दबी जुबान से सामने आ रहे हैं। इन प्रभावशाली चेहरों पर पड़ा पर्दा उठाने की जगह तयशुदा रणनीति के तहत इन नापाक चेहरों को बचाए जाने की जुगत भिड़ाई जा रही है।
मौजूदा जांच को देखते हुए पूरी जांच प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में आ गई है। प्रकरण में जहां एक ओर संस्था की सचिव अल्पना शर्मा को गिरफ्तार किया गया वहीं संस्था की अध्यक्ष ममता चौधरी और पूर्व अध्यक्ष महंत हनुमान दास से अब तक पूछताछ भी नहीं की गई है। यहां तक की संस्था के इन पदाधिकारियों का नाम भी अब तक इस पूरे प्रकरण में पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया है। हैरत की बात यह है कि जांच के दौरान अब तक संस्था के रजिस्टे्रशन दस्तावेजों को देखा तक नहीं गया जिसमें संस्था में प्रारम्भ से ही कई अनियमितताएं की जा रही थीं। दरअसल आवाज संस्था का रजिस्टे्रशन सोसायटी एक्ट में 2003 में कराया गया था। इसकी पहली कार्यकारिणी में शांति देवी पत्नी ह्रदय राम को अध्यक्ष और अल्पना शर्मा पत्नी राहुल धस्माना को सचिव नियुक्त किया गया। इसके बाद से संस्था के अध्यक्ष तो बदलते रहे लेकिन सचिव हमेशा अल्पना शर्मा ही बनी रही। इसके बाद गृह चलाने की मान्यता और अनुदान की स्वीकृति के बाद रामगंज स्थित निवाई महंत की हवेली के स्वामी हनुमान दास को संस्था का अध्यक्ष बताया गया। करीब दो साल तक संस्था का भार संभालने के बाद पहली कार्यकारिणी में साधारण सदस्य रही ममता शर्मा को अध्यक्ष मनोनीत किया गया। ममता शर्मा को अध्यक्ष बनाए जाते समय उनका पता वही लिखवाया गया जो पूर्व कार्यकारिणी में संस्था सचिव अल्पना शर्मा के नाम दर्शाया गया था। लेकिन, शुरू से ही कागजों में की जा रही इन गड़बडिय़ों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। इसी तरह संस्था के प्रारम्भ में सचिव अल्पना शर्मा का व्यवसाय समाजसेवा दिखाया गया जबकि अगली कार्यकारिणी में इसे मूक-बधिर अध्यापन विशेषज्ञ कर दिया गया। इस पूरे प्रकरण और मामले में अहम तथ्य यह है कि जांच में सिर्फ वर्तमान बैच की छात्राओं और सचिव अल्पना शर्मा को ही शामिल किया गया है। इससे पहले संस्था की गतिविधियों और पदाधिकारियों को जांच में पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।रजिस्ट्रेशन के बाद एक बार भी न मॉनिटरिंग न काउंसलिंग
मामले में सबसे चौंकाने वाला तथ्य है कि आवाज संस्था के रजिस्ट्रेशन के बाद एक बार भी न तो इसकी मॉनिटरिंग की गई और न ही छात्राओं की काउंसलिंग। बालिका गृह से कुछ बालिकाओं को पढ़ाई के लिए आवाज फाउंडेशन संस्था में भेजा गया था, लेकिन इसके बाद न तो बालिका गृह और न ही बाल कल्याण समिति के अधिकारियों ने संस्था का निरीक्षण किया, जबकि नियमानुसार इन दोनों के अधिकारियों को हर माह काउंसलिंग और निरीक्षण करना था। अधिकांश गृहों में भी अधिकारियों का ऐसा ही रवैया रहता है। इस मामले में निलंबित की गई गांधीनगर महिला एवं बाल गृह की अधीक्षक कविता थपलियाल का कहना है कि यदि संबंधित विभाग द्वारा इसकी प्रभावी मॉनिटरिंग की जाती तो इस प्रकार की घटना संभव ही नहीं थी।
तीन सरकारें, तीनों मेहरबान
एनजीओ संचालिका अल्पना शर्मा ने 2003 यानि कांग्रेस के राज में सोयायटी का गठन किया। दो साल दिखावा करने के बाद 2005 में भाजपा की सरकार में तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री मदन दिलावर ने इसका सरकारी रजिस्ट्रेशन कर दिया जिसके बाद अल्पना शर्मा को सरकारी सहायता मिलने लगी तब से लेकर अब तक करोड़ों रुपए की सहायता ले ली जिसकी कुछ रकम ही खर्च की गई। कानोता में जिस जगह यह एनजीओ चल रहा वह भी सरकारी जमीन है। अल्पना शर्मा के रसूख के कारण समाज कल्याण विभाग के अधिकारी कार्यवाही करने से घबराते थे। पुलिस सभी पहलुओं पर गहनता से पूछताछ कर रही है।
जर्मनी तक से आर्थिक मदद
अल्पना शर्मा के निकटवर्ती रिश्तेदार के ऊंचे राजनीतिक रसूखात का आलम यह था कि अग्रिम संगठन का पदाधिकारी होने के कारण उसके दिल्ली तक गहरे रिश्ते थे। इनकी आड़ में वह जर्मनी सहित कुछ अन्य देशों से भी आर्थिक मदद लेता रहा है।
अल्पना शर्मा के निकटवर्ती रिश्तेदार के ऊंचे राजनीतिक रसूखात का आलम यह था कि अग्रिम संगठन का पदाधिकारी होने के कारण उसके दिल्ली तक गहरे रिश्ते थे। इनकी आड़ में वह जर्मनी सहित कुछ अन्य देशों से भी आर्थिक मदद लेता रहा है।
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