शुक्रवार का दिन भिखीविंड
गांव के लिए बहुत भारी रहा। दलबीर कौर जिन हाथों से कभी भाई सरबजीत की कलाइयों पर
राखी सजाती थीं, उन्हीं हाथों ने शुक्रवार को उसकी चिता को आग दी। इस दृश्य को
जिसने भी देखा (टीवी पर भी) आंखें भर आईं। सरबजीत की जिंदगी के लिए जंग लड़ने वाली
बहन को उम्मीद थी कि वे मौत को हरा देंगी, लेकिन नियति और पाकिस्तान की नीयत को
कुछ और ही मंजूर था। भाई-बहन का यह बंधन अब हमेशा के लिए टूट गया.
सरबजीत
की मौत भले ही पाकिस्तान में हुई, लेकिन उनकी पार्थिव देह को अपने 'गांव की मिट्टी'
नसीब हुई। (पाक ने मुंबई के गुनाहगार आतंकवादी कसाब का शव लेने से
इनकार कर दिया
था,पाकिस्तानियों की ऐसी किस्मत कहां जो उन्हें अपने वतन की मिट्टी नसीब हो)
पंजाब के इस बेटे को अंतिम विदाई देने के लिए मानो पूरा पंजाब उमड़ पड़ा। भिखीविंड
में शुक्रवार की दोपहर पांव रखने तक की जगह नहीं थी।
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