सिक्को का संग्रहालय
-देवकिषन राजपुरोहित
वस्तुओं का
संग्रह करने के अनेक शोक है; कोई भिन्न भिन्न समाचार पत्रों के शीर्षकांे का संकलन करता है, तो कोई माचीस की डिबियों का संग्रह करता है। कोई चित्रों का संग्रह करता है, तो कोई कार्टूनों का संकलन करता है। कोई मूर्तियों का, तो कोई प्राचीन बर्तनों का संकलन करता है। इसी कड़ी में कई लोग पुराने सिक्कों का संकलन करते है। अपने घर पर सदंूकची में रखते है आने जाने वालों को बताते भी है। सिक्कों का संग्रह बहुत ही महंगा होता है।
जितना पुराना सिक्का
उसकी उतनी ही अधिक राषि लगती है। इस मंहगे और ऐतिहासिक रूचि रखने वालों मंे हाल ही में एक नाम उभर कर आया है बीकानेर जिले के नोखा निवासी ओमप्रकाष गट्टाणी का जो अनेक देषों के सिक्कों व भारत की स्वंतत्रता से पूर्व की पूरे भारत की रियासतों के सिक्कों का संकलन किया है, जिसमें सोने, चांदी, तांबे, पीतल, एलम्युनियम के प्रचीनतम सिक्के उपलब्ध है। श्री गट्टाणी ने इन सिक्कों को किसी संदूकची में बंद करना उचित नहीं समझा। उन्होने नोखा, नागौर रोड़ पर एक भव्य म्यूजियम ओमजी श्कोईन एण्ड क्यूरीई कलेक्षनश् बनवाकर शीषे के शौ-केषों में तरतीब से भवन के अंदर टेबलों पर सजाकर रखा है।
सिक्कों को
इस तरतीब से सजाकर रखा गया है कि सिक्के अलग अलग खांचों में लगे है। ये सिक्के तत्कालीन, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक व सामाजिक व्यवस्थाओं का दर्पण भी है। श्री गट्टाणी ने पूर्व में सिक्कों का एक बहुत बड़ा संग्राहलय असम राज्य के जोरहाट में ऐतिहासिक जिम खाना क्लब के गोल्फ कोर्स के पास विक्टोरियाकालीन फार्म हाउस जोरहाट में अपनी माता श्रीमती जोरादेवी के नाम से जोरा विला भी स्थापित कर रखा है। जोरा विला में ब्रिटिष व राजवाड़ों के समय के दुर्लभ चित्र, घड़ी, कैमरे वाद्य यंत्रादि अनेक वस्तुओं को भी सम्मिलित किया गया है; जिसमें पुरानी सभी प्रकार की कारें भी दर्षकों के आकर्षक का केन्द्र बिन्दू है।
विष्वस्तरीय ख्यातिप्राप्त बनारस हिन्दू विष्वविद्यालय वाराणसी, दिल्ली कोईन सोसाईटी, कलकत्ता, म्युमिसटेक सोसायटी के आप आजीवन सदस्य हैं। आपके सिक्कों में राजस्थान के सभी रजवाड़ों के साथ साथ भारत के सभी शासकों के सिक्के भी शामिल है। ब्रिटिष काल के लगभग सभी सिक्के और अन्य विदेषों के सिक्के तथा प्रत्येक राज्य का इतिहास, सिक्के का उस समय का मूल्य, किसने जारी किया? किस धातु का है? आदि जानकारी भी शौ-केष के साथ लगा रखी है। राजस्थान विष्वविद्यालय जयपुर ने 5 वर्ष पूर्व एम.ए. म्यूजियोलाजी में आरंभ की थी। कतिपय सरकारी म्यूजियम उनके अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र रहे हैं। अनेक छात्र छात्राऐं सिक्कों के बारे में, प्राचीन मुद्रा के बारे में शोध भी करते हैं, किन्तु मात्र पुरानी पुस्तकों से इधर उधर सामग्री का संकलन करते हैं। ऐसे शोधार्थियों के लिये सिक्कों का संकलन बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा।
शोधार्थियों को
यदि शोध के लिये नोखा आकर रूकना पड़े तो उनके लिये विश्राम घर की भी सुविधा इस संग्रहालय में उपलब्ध है। श्री गट्टाणी चाहते है कि राजस्थानी पुरानी साहित्य, संस्कृति, कला एवं ग्रामीण औजारों एवं उपकरणों का एक विषाल म्युजियम विकसित करें ताकि नोखा में आने वालों के लिये एक टयूरिजम पैलेस की कमी ना रहे। श्री गट्टाणी के नोखा स्थित संग्रहालय के विकास को गति देने के लिये उपयुक्त संग्राहलय के विकास को गति देने के लिये उपयुक्त संग्रहालय भवन का निर्माण करा लिया है। और वह दिन दूर नहीं जब इस संग्रहालय का भव्यरूप भी देखने को मिलेगा। धार्मिक पर्यटन स्थल देषनोक से मात्र 30 किलोमीटर नोखा का यह आकर्षण विदेषी व देषी सैलानियों के लिये एक आकर्षक पर्यटन स्थल का रूप लेने वाला है। नागौर से जो पर्यटक देषनोक या देषनोक से जो पर्यटक नागौर जाते हैं उनके लिये यह पर्यटन मिड-वे बनने से पर्यटकांे को बीच रास्ते के पूरा इतिहास उपलब्ध हो जायेगा।
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